हिट विकेट होना मना है

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राकेश कुमार अग्रवाल
महज 4 माह पहले की बात है . भारत चार टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने ऑस्ट्रेलिया गया था . ऑस्ट्रेलिया के शहर ऐडीलेड में पहला टेस्ट मैच खेला जा रहा था . भारत ने पहले खेलते हुए 244 रन बनाए थे . अपने वतन में खेल रही आस्ट्रेलिया की टीम के लिए यह कोई बडा स्कोर नहीं था . लेकिन भारतीय गेंदबाजी के समक्ष ऑस्ट्रेलिया की टीम महज 191 रन बना सकी . इस तरह भारत की टीम पहली पारी में 53 रनों की बढत के साथ बेहतर स्थिति में थी . लेकिन मैच के तीसरे दिन दूसरी पारी खेलने उतरी भारतीय टीम ते धुरंधरों ने बल्ले से जो शर्मनाक प्रदर्शन किया तो देखते ही देखते पूरी भारतीय टीम महज 36 रनों के स्कोर पर पवेलियन लौट गई . जबकि टीम विराट कोहली समेत एक से एक दिग्गज बल्लेबाजों से सजी हुई थी .
इस तरह 88 सालों के क्रिकेट इतिहास में कागजों में सबसे सशक्त भारत की टीम ने सबसे घटिया प्रदर्शन की वह इबारत लिख दी कि बल्लेबाजों का यह दयनीय प्रदर्शन देश दुनिया में सभी की जुबान पर था . जहां टीम का स्कोर 14 रन पर 1 विकेट था वहीं पूरी टीम 36 रन पर आल आउट हो गई . कहां पहली पारी के प्रदर्शन के आधार पर टीम के जीतने की आशा बंध गई थी वहीं अगले दिन टीम मैच गंवा चुकी थी . दुनिया की सबसे बेहतरीन टीम का इस तरह आउट होने का मतलब यह नहीं था कि ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाज मारक गेंदबाजी करना सीख गए थे या भारतीय बल्लेबाजों के बल्ले में घुन लग गया था . या हमारे बल्लेबाज बल्लेबाजी भूल गए थे . दरअसल हमारे बल्लेबाज कई बार लगातार कुछ विकेट गिरने के बाद इतने दबाब में आ जाते हैं कि अपना स्वाभाविक खेल खेलने के बजाए तू चल मैं आता हूं की तर्ज पर एक एक कर अपना विकेट भेंट करते चले जाते हैं . इस तरह भारत ने पहला टेस्ट मैच आठ विकेट से गंवा कर अपने सिर पर दबाब ओढ लिया था . लेकिन कहते हैं कि एक हार का मतलब यह नहीं होता है कि सब कुछ लुट गया . सब कुछ बर्बाद हो गया या हमने सब कुछ गंवा दिया है . पहला टेस्ट मैच हार कर सीरीज की शुरुआत करने के बाद भी जब चार टेस्ट मैचों की सीरीज का समापन हुआ तो भारत 2-1 से ऑस्ट्रेलिया को उसी की धरती पर हराकर सीरीज जीत चुका था .
क्रिकेट की भाषा में ही बात करूं तो एक बल्लेबाज जब बैटिंग करने क्रीज पर आता है तो उसे तेज गेंदबाजों की कभी 140-145 किमी. प्रति घंटा की रफ्तार वाली तूफानी गेंदों का तो कभी नाचती – थिरकती हवा में घूमती स्पिन गेंदों का सामना करना पडता है . तो कभी बाउंसर तो कभी यार्कर तो कभी गुगली . गेंदबाज हर तरह से बल्लेबाज को चकमा देकर आउट करने का प्रयास करता है . बल्लेबाज भी केवल बोल्ड आउट होता हो ऐसा भी नहीं है . एलबीडब्ल्यू ( पगबाधा ) , कैच , स्टम्पिंग , रन आउट आदि तमाम तरह से बल्लेबाज के आउट होने के चांस होते हैं . बल्लेबाज के आउट होने की एक ऐसी भी परिस्थिति होती है कि बल्लेबाज स्वयं हिट विकेट हो जाता है . अर्थात बल्लेबाज का बल्ला गेंद को हिट करने के बजाए खुद स्टम्प से जा टकराता है और गिल्ली गिरते ही अम्पायर बल्लेबाज को हिट विकेट आउट करार देता है . क्रिकेट की भाषा में इसे गिफ्टेड विकेट कहा जाता है जब बल्लेबाज स्वयं अपना विकेट गंवाकर पवेलियन को कूच कर जाता है .
कोरोना काल में भी कमोवेश एक हद तक ऐसा ही हो रहा है जब तमाम लोग महज विल पावर की कमी से कोरोना से भयाक्रांत होकर जान गंवा रहे हैं . कोरोना जितनी जानें ले रहा है उससे कहीं ज्यादा लोग हिट विकेट होकर जिंदगी गंवा रहे हैं .
कल की ही बात है मेरे मित्र के पास उनके पिता का सुबह सवेरे 5 बजे फोन आ गया . सुबह पांच बजे पिता का फोन देखकर मित्र भी सकते में आ गया कि सब खैरियत तो है . जब फोन पर बात शुरु हुई तो पिता अपने बेटे से बोले कि मुझे बडा डर लग रहा है . तीन दिन से मुझे नींद नहीं आ रही है . मुझे लग रहा है कि मैं अब बचूंगा या नहीं . जबकि वे पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं उन्हें न बुखार है न ही कोई अन्य बीमारी है .
यदि स्वस्थ व्यक्ति कोरोना के भय या खौफ से इस तरह की धारणायें दिल में पाल लेगा , मन में मौत को लेकर पहले से गांठ बांध लेगा तो फिर कोरोना हो या अन्य कोई बीमारी से आधी लडाई तो वह पहले ही हार जाएगा . 2014 में मुझे स्पाइन में इंफेक्शन हुआ . इंफेक्शन इतना ज्यादा था कि डाॅक्टरों को एमआरआई कराने के बाद तत्काल आपरेशन का निर्णय लेना पडा . मेरा एक पैर पहले से पोलियो ग्रस्त था . स्पाइन इंफेक्शन के चलते दूसरे पैर ने भी काम करना बंद कर दिया था . बैसाखियों से चलने वाला बंदा अब व्हील चेयर पर आ गया था . डाॅक्टर आपरेशन के बाद मुझसे बोला कि मेरा काम खत्म हो चुका है . अब आपकी विल पावर और फिजियोथेरेपिस्ट की मेहनत ही आपको फिर से खडा करेगी . दर्द होगा . तकलीफ होगी . लेकिन यदि आपको फिर से खडा होना है तो तकलीफ तो झेलनी ही पडेगी . फिजियोथेरेपिस्ट जब मेेरी फिजियोथेरेपी करने आता तो मेरे पैर में मशीन लगाकर मुझसे कहता था कि मैं 100 तक गिनती गिनूं . लेकिन मैं 100 के बजाए 300 से 400 तक गिनती गिनता . क्योंकि मुझे जल्दी से ठीक होने की जिजीविषा थी . समझने की जरूरत यही है कि मन को मजबूत करने की जरूरत है . अपनी विल पावर को बनाए रखना है . याद रखिएगा कि आप बल्ला लेकर मैदान में उतरे हैं तो बल्ले के साथ पूरा न्याय करिए न कि अपना विकेट उपहार में देकर पवेलियन लौट आइए . कोरोना से भी आपको जूझना है आपका जीवन अनमोल है एवं बहुत सारे लोगों की निगाहें आप पर हैं . अपने लिए और अपने अपनों के लिए आपको लम्बी पारी खेलना ही पडेगी .

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