Bihar Unemployment: बिहार की बेरोज़गारी पलायन में छिपी? 

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Bihar Unemployment: बिहार की बेरोज़गारी पलायन की समस्या में छिपी है। और ये समस्या नीतीश सरकार के लिए अबूझ पहेली बनी हुई है। अप्रैल माह में बिहार में बेरोज़गारी दर 46.6 प्रतिशत आंकी गई, जो राष्ट्रीय दर से दोगुनी है।

Bihar Unemployment: बिहार की बेरोज़गारी पलायन की समस्या में छिपी है। और ये समस्या नीतीश सरकार के लिए अबूझ पहेली बनी हुई है।

सीएमआईई सर्वेक्षण में अप्रैल में बिहार में बेरोज़गारी दर 46.6% आंकी गई है। चुनावी साल में प्रवासियों की आमद से नीतीश सरकार संकट में दिख रही है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के एक सर्वेक्षण में अप्रैल के लिए बिहार में बेरोजगारी दर 46.6 प्रतिशत आंकी गई है, जो राष्ट्रीय दर से लगभग दोगुनी है, और लाखों श्रमिकों के घर लौटने से यह और भी खराब होने वाली है। 

अब बेरोज़गारी को बेरोजगारी को समझते हैं। आमतौर पर रोजगार मार्केट के आंकड़े  को बेरोजगारी के दर से समझा जा सकता है। दो तरह से इसके लिए आंकड़े दिए जाते हैं। एक तरीका साप्ताहिक स्टेटस रिपोर्ट। इसे करंट वीकली स्टेटस CWS कहते हैंl 

दूसरा यूसुअल प्रिंसिपल एंड सब्सिडियरी स्टेट्स UPSS यानी आम सिद्धांत और सहायक स्टेटस है।

बिहार में उच्चतर स्तर की बेरोज़गारी है। जिसे पलायन की समस्या मैं गिन लेते हैं। परंतु बिहार की बेरोज़गारी की समस्या को पलायन की समस्या के रूप में गिना है।

अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन आईएलओ के हिसाब से जिस व्यक्ति को रोजगार नहीं है और, वह सक्रिय रूप से काम खोज रहा है, तब ही उसे बेरोज़गार कहेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि जो व्यक्ति रोजगार गवां चुका है और रोज़गार की तलाश में नहीं है, उनको बेरोज़गार में नहीं गिना जाएगा l

एनएसएसओ सर्वे के अनुसार भारत मे  2009-10 के 15 वर्ष से ज्यादा उम्र की ग्रामीण औरतों में 33% से ज्यादा  घरेलू परिवेश में ही रोजगार के अवसर चाहते हैं। और इसी तरह  शहरी औरतों में 27% से ज्यादा औरतें अपने घर में रहकर रोज़गार चाहती थी, उन्हें बेरोज़गारों की संख्या में नहीं जोड़ा गया।

पश्चिमी औद्योगिक देशों में औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार है। इनकी गिनती आसान है। छंटनी और रोज़गार का आंकड़ा  पश्चिमी देशों में आसानी से मिल जाता है।  

परंतु भारत में और उसमें भी  backward राज्य बिहार में बेरोज़गारी का आंकड़ा जुटाना कठिन होता है। यहां ज्यादा लोग असंगठित क्षेत्र में  दैनिक मजदूरी करते हैं । इनका जब मार्केट में औपचारिक स्टेटस नहीं होता है। यानी यह अनौपचारिक क्षेत्र में है।

रोज़गार मार्केट के आंकड़े को बेरोज़गारी के दर से समझा जा सकता है। दो तरह से  इसके लिए आंकड़े दिए जाते हैं। 

एक तरीका है साप्ताहिक स्टेटस रिपोर्ट। इसे करंट वीकली Branch CWS कहते हैं l दूसरा है यूसुअल् प्रिंसिपल एंड सब्सिडियरी स्टेटस UPSS यानी आम सिद्धांत और सहायक स्टेटस।

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