Caste Census: 2024 के चुनावी रण और नौकरियों में भी उठेगी जातीय हिस्सेदारी की माँग

10
Caste Census: भाजपा से कई मोर्चों पर शिकस्त खा चुका अपोजिशन अगले लोकसभा चुनाव 2024 में उसे जातिगत आरक्षण के दलदल में गिराना चाहता है।

Caste Census: भाजपा से कई मोर्चों पर शिकस्त खा चुका अपोजिशन अगले लोकसभा चुनाव 2024 में उसे जातिगत आरक्षण के दलदल में गिराना चाहता है। वो सामाजिक न्याय की पिच पर बीजेपी की पटखनी देना चाहता है। बिहार प्रदेश में अलग से जाति गणना इसी पॉलिटिक्स का हिस्सा है।

बिहार की जाति गणना रिपोर्ट से देश की सियासत गरमा गई है। विपक्षी दलों ने जिस तरह से ओबीसी केंद्रित सामाजिक न्याय की लाइन पकड़ी है, उससे आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान पिछड़ी जाति से जुड़े मुद्दे ही छाए रहेंगे। अब ये तय हो गया है कि केंद्रीय स्तर पर जाति गणना कराने, जातियों की आबादी के हिसाब से नीतियां बनाने और समुचित अनुपात में सरकारी नौकरियों में भागीदारी देने की मांग और तेजी होगी। बीजेपी पर फौरी तौर पर केंद्रीय स्तर पर जातिगत गणना कराने का दबाव बढ़ना तय है।

भाजपा शासनकाल में कई मोर्चों पर मात खा चुका विपक्ष अगले लोकसभा चुनाव 2024 में उसे सामाजिक न्याय के मुद्दे पर घेरना चाहता है। बिहार में अलग से जाति गणना इसी रणनीति का हिस्सा है। दूसरी ओर, कांग्रेस सवर्ण मतदाताओं का मोह त्याग कर इसी रणनीति के तहत जाति गणना, महिला आरक्षण में ओबीसी महिलाओं के लिए कोटा को लेकर राजनीति शुरू कर दी है। वहीं यूपी में सपा पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) पर दांव लगा रही है।

दरअसल, 2021 में कोरोना महामारी के कारण देश में जनगणना नहीं हो पाई। हालांकि, मोदी सरकार ने तब साफ कर दिया था कि वह जनगणना में अलग से जाति की गणना नहीं कराएगी, लेकिन अब बिहार की रिपोर्ट सामने आने के बाद पार्टी पर इस मामले में अपना रुख साफ करने का दबाव होगा। 

बहरहाल, बीते करीब 10 सालों में अगड़ों की पार्टी का तमगा हटाकर अति पिछड़ी जातियों में मजबूत पैठ बना चुकी बीजेपी फिलहाल वेट एंड वॉच की मुद्रा में है। ओबीसी समाज पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने नवंबर महीने में प्रयागराज में ओबीसी महाकुंभ बुलाने की घोषणा की है। इसके अलावा पार्टी के पास गैर-रसूखदार ओबीसी जातियों को साधने के लिए रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के तौर पर एक बड़ा हथियार भी है।

2014 के चुनाव में पहली बार बीजेपी को पीएम मोदी के तौर पर ओबीसी के मजबूत चेहरे का व्यापक लाभ मिला। इसके जरिए भाजपा रसूख वाली ओबीसी जातियों के मुकाबले अति पिछड़ा ओबीसी में मजबूत पैठ बनाने में कामयाब हुई।

साल 1996 में भाजपा को अति पिछड़ी जातियों के महज 17 फीसदी वोट मिले थे, जो 2014 में 43 फीसदी और 2019 में 48 फीसदी हो गए। अगर केंद्रीय स्तर पर जाति गणना समेत ओबीसी के दूसरे मुद्दे केंद्र में आए तो बीजेपी को इससे बाहर निकलने के लिए बड़ी मशक्कत करनी होगी।

भाजपा सूत्रों का कहना है कि नवंबर में प्रयागराज में ओबीसी महाकुंभ प्रस्तावित है। इसमें पार्टी कुछ अहम घोषणाएं कर सकती है। पार्टी का कहना है कि मोदी सरकार के आने के बाद ओबीसी से जुड़े कई काम हुए हैं। ओबीसी आयोग को सांविधानिक दर्जा, नीट में ओबीसी आरक्षण इसी सरकार की देन है। इसकी वजह से देश में पहली बार ओबीसी में शामिल कमजोर जातियों को सरकारी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों का लाभ मिला है। सरकार में हिस्सेदारी बढ़ी है। ऐसे में ओबीसी में भारतीय जनता पार्टी की पैठ कमजोर करना आसान नहीं होगा।

Reports Today

Click