महात्मा गाँधी – एक करिश्माई महामानव

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रिपोर्ट – राकेश कुमार अग्रवाल

महात्मा गांधी की आज देश 151 वीं जयंती मना रहा है . गांधी जी देश और दुनिया के लिए किसी किवदंती से कम नहीं हैं तभी तो मशहूर वैज्ञानिक अल्बर्ट आंइस्टीन को उनके बारे में कहना पडा था कि आने वाली पीढियाँ सहज ही यह विश्वास नहीं करेंगी कि गांधी जी जैसा हाड – माँस का कोई पुतला भी जन्मा था .

गांधी जी केवल स्वतंत्रता संग्राम के नायक ही नहीं वह बैरिस्टर भी थे . नई पीढी शायद यह न जानती होगी कि महात्मा गाँधी ने पत्रकारिता भी की थी . इंग्लैण्ड बैरिस्टरी करने जाने तक जिस मोहनदास ने कभी कोई समाचार पत्र भी नहीं पढा था उसी मोहनदास ने 1903 से 1948 के बीच में 4 समाचार पत्र निकाले थे .

इण्डियन ओपीनियन , नवजीवन , यंग इण्डिया और हरिजन चारों समाचार पत्र गाँधी जी ने निकाले . सर्वप्रथम 4 जून 1903 को गांधी जी ने इंडियन ओपीनियन के पहले अंक में अग्रलेख लिखा जो 4 भाषाओं में छपा था . मोहनदास जब बैरिस्टरी की पढाई करने इंग्लैण्ड पहुंचे वहां दलपतराम शुक्ला के सुझाव पर उन्होंने प्रतिदिन एक घंटे डेली टेलीग्राफ , डेली न्यूज आदि अंग्रेजी समाचार पत्र पढना शुरु किए . यहीं से उन्हें लिखने की ललक लगी . वहां के वेजीटेरियन समाचार पत्र में उनके लेख छपे .
जून 1903 से लेकर 1914 तक महात्मा गांधी इण्डियन ओपीनियन समाचार पत्र के सम्पादक रहे . हालांकि दो और समाचार पत्र हैं जिनसे गांधी जी का जुडाव रहा बांबे क्रानिकल और सत्याग्रही लेकिन दो – चार अंक के बाद ये दोनों समाचार पत्र बंद हो गए .
नवजीवन , यंग इण्डिया और हरिजन सभी समाचार पत्रों में महात्मा गाँधी ने सम्पादक जैसा महत्वपूर्ण दायित्व संभाला . जिससे सहजता से समझा जा सकता है कि गांधी जी इस बात को समझते थे कि समाचार पत्र वो सशक्त माध्यम है जिससे आम जनमानस तक आजादी के विचारों को पहुंचाया जा सकता है . उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भागी बनाया जा सकता है . तभी तो उन्होंने समाचार पत्रों के संचालन में लगने वाली भारी भरकम धनराशि के लिए यहां वहां से मदद लेने में गुरेज नहीं किया .
गांधी जी का जेल से चोली दामन का साथ रहा . जेल जाने से वे डरे नहीं बल्कि अपने आंंदोलनों की धार को और पैना करते गए . जेल जाने के डर से गांधी जी ने न आंदोलनों को कम किया न ही अंग्रेजों के दमन के खिलाफ सरेंडर किया . क्या आप विश्वास करेंगे कि अपनी जिंदगी का लगभग 15 फीसदी जीवन उन्होंने जेल में बिताया . अपने 78 वर्ष के जीवनकाल में से महात्मा गांधी 11 साल 19 दिन जेल में रहे . हिंदुस्तान ही नहीं दक्षिण अफ्रीका की जेलों में भी वे 4 साल बंद रहे .

बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि महात्मा गांधी के पिता ने चार विवाह किए थे . एक के बाद एक पत्नी के निधन के बाद चौथी पत्नी पुतलीबाई का जीवनकाल लंबा रहा . पुतलीबाई की चार संतानों में मोहनदास सबसे छोटे थे. मोहनदास की 13 वर्ष की अल्पायु में अपने से एक साल बडी कस्तूर से शादी हो गई थी . लेकिन शादी के बाद गृहस्थी या बाल बच्चों में उलझने के बजाए मोहनदास ने पढाई जारी करने का मन बनाया . मोहनदास 18 वर्ष की उम्र में कानून की पढाई करने के लिए 4 सितम्बर 1888 को समुद्री यात्रा से लंदन के लिए रवाना हो गए थे . इस पढाई के लिए उन्हें सवा सौ साल से अधिक समय पहले पांच हजार रुपए की छात्रवृत्ति दी गई थी .

2 अक्टूबर 1869 संवत् 1925 भादों बदी बारस को पोरबंदर सुदामापुरी में 22 कमरों वाली 3 मंजिला हवेली में जन्मे मोहनदास बचपन से ही बडे शर्मीले थे . जहां मोहन का जन्म हुआ था आज वहां पर कीर्ति मंदिर है .

आज मोटर युग है . जेट और बुलेट ट्रेन के इस युग में नेता , अभिनेता , अधिकारी सभी सुख सुविधा सम्पन्न लोग चाॅपर या जहाज से उडा करते हैं . केवल वही लोग पैदल चलते हैं जो सेहत के प्रति अति संवेदनशील हैं या फिर चिकित्सकों ने उन्हें प्रतिदिन वाॅक करने की सलाह दे रखी है . स्वाधीनता संग्राम के दौरान भी कारें , मोटरें आ गई थीं . आम के पास हो न हो लेकिन खास के पास ये मोटर कारें जरूर थीं . फिर भी गांधी जी ने कारों के काफिले में लदकर चलने के बजाए हाथ में लाठी थाम पैदल चलने को तवज्जो दी .

40 साल के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधी जी रोज 18 किमी. पैदल चले . इस लिहाज से गांधी जी ने 79000 किमी. की दूरी पैदल चलकर तय की . यह दूरी धरती के दो चक्कर लगाने के बराबर है .
गांधी जी को आप लिक्खाड भी कह सकते हैं . उन्होंने अपने जीवन में एक करोड से अधिक शब्द लिखे . गणित की भाषा में समझाऊं तो उन्होंने प्रतिदिन औसतन 700 शब्द लिखे . गांधी जी द्वारा लिखे 50000 डाक्यूमेंट आज भी सुरक्षित मौजूद हैं . गांधी जी के लेखन के बारे में जो सबसे चौंकाने वाला तथ्य है वह यह कि गांधीजी बायें और दायें दोनों हाथों से लिख लेते थे .

गांधीजी को पांच बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया लेकिन नोबेल कमेटी को गांधी जी नोबेल सम्मान के लायक नहीं लगे . अलबत्ता दुनिया की मशहूर टाइम मैगजीन ने तीन बार गांधी जी पर कवर स्टोरी छापी .

1944 में पहली दफा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने गांधी को राष्ट्रपिता कहा था . वाकई गांधी का योगदान इस देश के लिए उसी तरह का है जिस तरह एक पिता अपने बच्चे के लिए करता है . गांधी करिश्माई व्यक्तित्व ही नहीं महामानव भी थे .

Rakesh Kumar Agrawal

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