लाॅकडाउन ने काम छुड़ाया, जेब में एक रुपया व पाॅकेट बाइबिल

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भूख, बेकारी में झांसी का पैदल सफर

छीना विवाहिता का पर्स , लोगों ने पकड थाने भेजा

राकेश कुमार अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट

कुलपहाड ( महोबा)। लाॅकडाउन के कारण काम छिनने के साइड इफेक्ट नजर आने लगे हैं। ढाबा बंद होने के बाद ढाबे में काम कर रहे युवक से काम छिनने के बाद कई कई दिनों से भूखे युवक ने पेड के नीचे एक बच्चे को लिए बैठी एक विवाहिता का पर्स छीन लिया। महिला के शोर मचाने पर युवकों ने उसे धर दबोचा और उसकी जमकर पिटाई कर पुलिस के हवाले कर दिया।

कोतवाली प्रभारी अभिमन्यु यादव के अनुसार पकडा गया युवक अर्जुन कुशवाहा झांसी का रहने वाला है वह महोबा में एक ढाबा पर काम करता था। लाकडाउन के कारण ढाबा बंद हो गया। ढाबा संचालक ने अर्जुन से वापस अपने घर जाने को कहा। जेब में एक रुपए का सिक्का और पाकेट साइज की बाइबिल लेकर अर्जुन महोबा से झांसी के लिए पैदल निकल पडा। भूखा प्यासा , पिचका पेट , थका हारा अर्जुन किसी तरह लडखडाते कदमों से कुलपहाड से सुगिरा पहुंचा। उसके पैरों में सूजन आ गई थी। वह चलने की स्थिति में भी नहीं था।

भूख के मारे अर्जुन का पेट कुलबुला रहा था तभी उसकी नजर पेड के नीचे एक बच्चे को गोद में लिए बैठी विवाहिता के पास पहुंचा। अर्जुन ने उस विवाहिता का बैग छीन लिया। वह बैग लेकर चंद कदम भी न चल पाया कि तभी महिला के शोर मचाने पर इकट्ठे हुए गांववासियों ने युवक को दबोचकर धुन दिया।

दरअसल भरवारा निवासी गौरी नाम की महिला को उसका पिता छत्रपाल उसकी ससुराल मऊ सहानिया से लेकर भरवारा जा रहा था तभी रास्ते में बाइक पंचर हो गई। पिता छत्रपाल बेटी को सडक किनारे एक पेड के नीचे बिठाकर बाइक का पंचर बनवाने चला गया था।

दबोचे गए युवक से जब महिला का पर्स छीनने के बारे में पूछा तो उसका कहना था कि उसे झांसी जाना है। जेब में पैसे नहीं हैं तीन दिन से खाना नहीं खाया, इसलिए उसने महिला का पर्स छीन लिया। पुलिस ने झांसी से अर्जुन के आपराधिक रिकार्ड के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि अर्जुन के माता पिता का काफी पहले निधन हो गया है। अब वह अपने चाचा के यहां जा रहा था। प्रभारी निरीक्षक ने उसके आपराधिक रिकार्ड की छानबीन कराने के बाद उसे अपनी तरफ से पचास रुपए देकर ट्रक से झांसी भिजवा दिया।

पूरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि अर्जुन के खिलाफ न तो छत्रपाल ने पुलिस में तहरीर दी न गांववासियों ने उस पर कार्यवाही का दबाव बनाया। ऐसे में पुलिस ने मानवीयता के आधार पर हालात के मारे अर्जुन को बिना कार्यवाही के झांसी के लिए रवाना कर दिया।

महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यदि लाॅकडाउन न हुआ होता तो क्या ढाबा बंद होता ? क्या अर्जुन बेरोजगार होता ? क्या अर्जुन को गौरी का बैग छीनने की जरूरत पडती ? जैसे तमाम सवालों के जबाव आज भी अनुत्तरित हैं जिसके कारण अर्जुन जैसे लाचार और बेरोजगार इंसानों का भी ईमान डोल जाता है।

Rakesh Kumar Agrawal

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