सैकड़ों ने खता की लाखों ने सजा पाई

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राकेश कुमार अग्रवाल
मन तो नहीं था कि फिर से कोरोना या कोविड 19 पर कलम चलाऊँ . क्योंकि मौतें हैं , तबाही है , चीखें हैं , कराहें हैं , करुण क्रंदन है , बेबसी है , लाचारी है , मातम है . मेरा भी मन बोझिल है बहुत व्यथित है .
ऐसा नहीं हैं कि मैंने मौतें नहीं देखीं . बचपन में ही दादा जी को खो दिया . बचपना चल ही रहा था कि पिता चल बसे . जब दादा जी व पिताजी का निधन हुआ मेरी उम्र का ये वो दौर था जब मैं मृत्यु का मतलब भी नहीं समझता था . जब समझदार हुआ तब से लेकर आज तक मैं भी मौत से कई बार खेला हूं . मौतें भी देखीं हैं , बहुत सारी देखीं हैं , नरसंहार देखे हैं . सामने से हो रही ताबडतोड फायरिंग देखी है . उससे बचते बचाते कवरेज भी की है . डाकुओं के डेरों में भी गया हूं . खौफ के साए में उनकी कवरेज भी की है . क्षत विक्षत और वीभत्स लाशें भी देखीं हैं . किसी अपनों के गम का मार्मिक विलाप और हाड कंपाने वाला क्रंदन भी देखा है . लेकिन ऐसा मंजर नहीं देखा . ऐसी बदहवाशी नहीं देखी . ऐसी घबराहट नहीं देखी . जहां व्यवस्था भी बेबस होकर पनाह मांग गई हो .
मुझे तो कोविड 19 प्रशासनिक और राजनीतिक सिस्टम को सुधारने का प्रकृति का रचा एक खेल लगता है . क्योंकि हमारी व्यवस्था इतनी बेरहम हो चुकी है कि वह राहत के नाम पर केवल फौरी उपचार पर फोकस करने को राजधर्म मानती रही है . तमाम सरकारें आईं , तमाम दलों की सरकारें आईं लेकिन इसके बाद भी हालात जस के तस ही रहे . जिस देश की रेगुलेरिटी अथारिटी मेडीकल काउंसिल ऑफ इंडिया आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी रही हो उससे आप अपेक्षा कर भी क्या सकते हैं .
कैराना के मशहूर शायर मुजफ्फर इस्लीम रजमी का एक शेर याद आता है कि
ये जब्र भी देखा है , तारीख की नजरों ने
लम्हों ने खता की थी , सदियों ने सजा पाई !
हम देश की आजादी की हीरक जयंती मनाने के करीब हैं आबादी बढकर 139 करोड जा पहुंची है . किसी भी देश के नागरिक केवल वहां के वोटर नहीं बल्कि वहां की मानव सम्पदा होते हैं . आजादी के लगभग 75 वर्षों के इतिहास में सरकारों के एजेंडे में कभी भी स्वास्थ्य शीर्ष एजेंडे में शामिल रहा हो तो याद करिए . हमारी भारतीय व परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों को संजोने , उनके प्रोटोकाल बनाने ,उनके स्टैंडर्ड बनाने एवं उनके फार्मुलेशन्स पर कोई भी मंत्रालय या काउंसिल के स्तर पर ऐसा काम हुआ हो तो याद करके बताइए कि जिसे भारतीय पद्धति का चिकित्सा दस्तावेज मानकर उसका मानकीकरण करके दुनिया के समक्ष रखा जाता . वो तो गनीमत है कुछ आयुर्वेदिक दवा कंपनियों और वैद्यों की जो अपने स्वविकसित फार्मूलेशन पर काम कर रहे हैं .
कभी जीडीपी का एक फीसदी तो कभी डेढ से दो फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च करने वाली सरकारें आज सकते में क्यों हैं क्योंकि हमने गांवो में अस्पताल तो खडे कर दिए लेकिन 75 वर्षों बाद भी डाक्टर नहीं दे पाए . उनको वो वातावरण नहीं दे पाए कि वे शहरों का मोह छोडकर गांवों , कस्बों में काम करने का सोचें . शहरी चिकित्सा सिस्टम धन्नासेठों और धनपशुओं की बांदी बनकर रह गया है . जहां गांव के मरीज का पहुंचने का मतलब होता है कि या तो वह कर्ज लेकर इलाज कराए या फिर अपनी जमीन जायदाद बेच डाले . मरीज और तीमारदार तो एक बकरा है जिसे हलाल होना है . मोटे कमीशन के बदले में नर्सिंग होमों में मरीज भेजे जाते हैं . पैसा बटोरने की होड लगी है . कोई नियम कायदा कानून नहीं है . सरकारों की नाक के नीचे सब होता है . इसके बावजूद सब खुल्लमखुल्ला होता है . इतने बडे देश में स्वास्थ्य के नाम पर जो बजट आवंटित किया जाता है वह ऊँट के मुंह में जीरा के समान होता है . तिस पर कमीशन और भ्रष्टाचार के अजगर उस पैसे का बडा हिस्सा निगलने को तैयार बैठे होते हैं . ऐसे में यदि कोरोना पंजे गडा रहा है और लोग बेबस और असहाय होकर अपने अपनों को तडपते हुए दम तोडते देख रहे हैं तो सवाल उठता है कि गिरेबां किस का पकडा जाए और पकडेगा कौन ? क्योंकि सभी दल एक ही थैली के चट्टे बट्टे नजर आते हैं .
मैं हमेशा इस बात का हिमायती रहा हूं कि आपके शरीर और आपके स्वास्थ्य से महत्वपूर्ण चीज जीवन में कुछ भी नहीं है . जिन सुख – सुविधाओं और ऐश्वर्य को भोगने के लिए इंसान ने अपने शरीर को दांव पर लगाया है जब वह आर्थिक रूप से सम्पन्न होता है उन चीजों को भोगने के लायक ही नहीं बचता क्योंकि तब तक उसका शरीर साथ देने लायक ही नहीं बचता . इसलिए बाहरी मेकअप और थोबडे को सजाने व संवारने से भी जरूरी है स्वास्थ्य को संभालना . आप सेहतमंद रहेंगे तो आपका चेहरा स्वत: कांति और ओजमय रहेगा . फिर किसी फेशियल और ब्लीच की इतनी जरूरत रह नहीं जाएगी .
कोरोना दरअसल जितनी बडी त्रासदी है उससे बडा सबक है देश के हुक्मरानों के लिए . सत्ता प्रतिष्ठान से जुडे नीति नियंताओं के लिए . बजट बनाने वाले अर्थशास्त्रियों के लिए , नीति आयोग के लिए . मेडीकल काउंसिल के लिए भी . सभी को जिम्मेदारी ओढने और नए सिरे से हेल्थ केयर सिस्टम को सुधारने पर काम करना होगा . अन्यथा जिन्होंने अपनों को खोया है जिनके परिवार के परिवार तबाह हो गए वे सरकार और सिस्टम को माफ करने वाले नहीं हैं .

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